प्रभु कल्कि आपको बुला रहे हैं
ईश्वर ने अपने पुत्रों को कभी भी अपने से अलग करना नहीं चाहा। उसने मनुष्यों को इसलिए रचा ताकि ताकि वे ईश्वर के हमेशा साथ रहे । वे चाहते थे मनुष्य हमेशा मुझसे रिलेशनशिप बनाये रखे और उनके तथा ईश्वर के बीच एक ऐसा रिलेशनशिप बन जाय ताकि वे ईश्वर से कभी भी अलग न हो सके । किन्तु शैतान ने मनुष्य को भरमा दिया और मनुष्य शैतान का कहना मानने के कारण ईश्वर से दूर हो गया । ईश्वर के द्वारा जो उसको अनन्त जीवन मिलना था उससे वह वंचित रह गया। यही कारण है कि मनुष्यों की मृत्यु होने लगी ।
अब मनुष्य दुखों की बदियों से गुजरने लगा, वह मृत्यु के वादियों से होकर गुजरने लगा और इन सब को देख कर उनके मन में भय समा गया । सबसे पहली बार भय या डर ईश्वर को छोड़ते ही उनके अन्दर समा गया। इससे पहले वे नहीं जानते थे कि भय किसको कहते हैं या डर किसको कहते हैं।
आज ईश्वर मनुष्य को मृत्यु से बचाने धरती पर कल्कि नाम से आये हैं और अपने पुत्रों को ढूँढ रहे हैं । वे अपने पुत्रों को अनन्त जीवन देने के लिए आए हैं ताकि मनुष्यों को मृत्यु से छुटकारा मिले । वे बाहें फैला कर अपने पुत्रों को ढूँढ रहे हैं। वे इन्तजार कर रहे हैं की उनका पुत्र उनके बाँहों में वापस आ जाय ।
लेकिन दुःख की बात यह है कि उनका पुत्र रंगीन दुनिया में खो चूका है, रंगीन दुनिया की चमक – दमक उन्हें अपने आहोश में ले लिया है । अब वो वहां से बहार निकल कर अपने पिता के पास आना नहीं चाहते हैं लेकिन उनको यह नहीं पता कि उनके पीछे – पीछे मृत्यु दौड़ रही है । मृत्यु उनको किस पल निगल जाएगा उन्हें पता नहीं और वे बेखबर होकर रंगीन दुनिया में विचरण कर रहे हैं ।
वे कहते हैं कि तुम मेरे लिए दरबाजा खोलो तो मैं तुम्हारे घर के अन्दर आऊंगा और तुम्हारे साथ तुम्हारे डायनिंग टेबल पर बैठ कर खाना खा जाऊंगा । अब प्रश्न यह उठता है कि क्या आप भगवान कल्कि के लिए अपने दिल का दरबाजा खोलने के लिए तैयार हैं ?
आपको ईश्वर ने जो आत्मा दिया था उसका रंग सफ़ेद था, उसमें 100 % Purity थी, उसमें 100 % Honesty थी, उसमें 100 % दयालुता थी, उसमें अनन्य प्रेम था बल्कि उनके अन्दर अनकंडीशनल प्रेम था । आपने दिन प्रति दिन उसमें दाग लगाते गया और उसका रंग सफ़ेद से बदल कर अनेक कलर के हो गए । आपने कभी भी दाग नहीं छुड़ाया और न उसपर कभी साबुन लगाया और न उसको कभी निर्मल पानी से धोया । अब वह दाग इतना गहरा होगया, वह दाग इतना पक्का होगया कि अब धोबिया धोये साड़ी उमरिया फिर भी दाग नहीं जाने वाला है ।
आपने कभी चाय पिया है । चाय पीते समय गलती से आपके शर्ट पर एक बून्द चाय गिर गया होगा । आपकी पत्नी क्या करती है ? अपना चाय पीना छोड़ देती है और आपका शर्ट खोलवा कर तुरत धोने भागती है । ऐसा क्यों ? क्योंकि अगर ज्यादा देर हो गई तो दाग नहीं छूटेंगे ।
भोजन करते समय गलती से आपके शर्ट पर कभी शब्जी या दाल गिर गया होगा । ये घटना क्या आपके साथ घटा है ? आपकी पत्नी खाना छोर कर तुरत आपका शर्ट लेती है और दाग को धो देती है । क्यों ? अगर देर करेंगे तो दाग नहीं छूटेगा । लेकिन आपने अपने आत्मा पर इतने दाग लगा चुके हैं कि अब यदि आप इसको धोना भी चाहे तो वह दाग नहीं छूटेगा। ज़रा देखो, आपके आत्मा का जो रंग सफ़ेद था वह अब कैसा होगया ? जिसमें गुण था – 100 % Purity , 100 % Honesty , 100 % दयालुता, अनन्य प्रेम बल्कि उनके अन्दर अनकंडीशनल प्रेम था उसके जगह अब कैसा रंग आगया ? 100 % Impurity , 100 % Dishonesty, 100 % कठोरता, उसमें कड़वाहट ही नहीं बल्कि उनके अन्दर दर्द देने वाला गुण आगया। अब क्या करोगे ? कितना भी कोशिश कर लो रंग छूटता ही नहीं । क्या कहते हो कि मेरी अबाज ही ऐसी है, कुछ भी करो मुझको गुस्सा तुरत ही आजाता है, क्या करूँ मुझको किसी की ऊँची आवाज बर्दास्त ही नहीं होता, लड़ाई तो होगी न । क्या करूँ, उसको डांटना पड़ा क्योंकि उसने काम ही किया था ऐसा। क्या करूँ मेरी सासु माँ ने तो सबके सामने मुझको इंसल्ट ही कर दी थी, उसको तो मजा चखाना जरुरी ही था। क्या करूँ ? मुझको मइके जाना था पर मेरी सासु माँ ने तो मुझको जाने की अनुमति ही नहीं दी, इसलिए झगड़ा करके मइके भागना ही पड़ा । अब शान्ति की तलाश में आप मेरे पास आते हो और कहते हो की मेरे घर में शान्ति नहीं है, कोई शांति दे दो और बाबा के चरणों में रुपये की गद्दी डाल जाते हो । शान्ति क्या बाजार में बिकती है कि कोई आपको खरीद कर लेकर दे दे ? इसीलिए मुझको धरती पर आना पड़ा ताकि मैं आपके आंशुओं को पोछ कर आनन्द का पगड़ी बाँध दूँ ।