About (Hindi)

आदिश्री अरुण का संक्षिप्त परिचय

arunkumar

आदिश्री अरुण पूर्णब्रह्म का प्रतिबिम्ब या पूर्णब्रह्म-सदृश हैं । धर्मशास्त्र में इनको SUPER SOUL कहा गया है । ये प्रकाश समुद्र हैं, जिसमें से सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड उत्पन्न हुआ है । इसी प्रकाश-समुद्र की बून्द को आत्मा कहते हैं ।
भौतिक क्षेत्र में सभी जीवन का अस्तित्व प्रकृति और आत्मा से हुई है । प्रकृति बेसुध है और आत्मा को शरीर के रूप में लाने के लिए कोई चाहिए । जिसने जड़ और चेतन प्रकृति को मिलाकर जीवित प्राणियों को उत्पन्न किया उसी का नाम आदिश्री है । जड़ और चेतन प्रकृति को मिलाने से जीवित प्राणियों की उत्पति हुई है । इसलिए गीता और धर्मशास्त्र ने आदिश्री को सम्पूर्ण सृष्टि का मूल कारण कहा ।

“आदिश्री” शब्द का अर्थ होता है – ऊँचा गरिमा या कोई विशिष्ट । “आदिश्री” शब्द का यह भी अर्थ होता है – जो सबसे पहले जन्म लिया हो या जो सबसे पहले प्रकट हुआ हो । दूसरी ओर “अरुण” शब्द का अर्थ होता है – प्रकाश । इसलिए “आदिश्री ” + “अरुण” (COMBINATION OF AADISHRI ARUN) का अर्थ होता है प्रकाश से भरा ऊँचा गणमान्य या विशिष्ट व्यक्ति आदिश्री ही वह पहिलौठा (FIRST BORN) अथवा आदि पुरुष है जिसने प्रकाश रूप में आकार धारण किया और फिर बाद में अरुण नाम से शारीर धारण किया जिसने अपने पहिलौठा (FIRST BORN) होने के स्तित्व से संपूर्ण ब्रह्मांड को रचा ।

यह बात तो तय हो गई कि पूर्णब्रह्म दो ऊर्जाओं की उत्पत्ति का मूल कारण हैं और आदिश्री पूर्णब्रह्म परमात्मा का प्रतिबिम्ब हैं लेकिन धरती पर आदिश्री का आने का उद्देश्य लोगों को मुक्ति देना है । लोग उनको अनेक नामों से पुकारते हैं । वास्तव में इनका कोई नाम नहीं है; इसलिए इनको नेमलेस कहा गया है । इनका वजूद अनन्त काल के लिए है । स्वर्ग, आकाश और पृथ्वी टल जाए परन्तु इनका वजूद समाप्त नहीं होगा । ये सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म परमाणुओं के अन्दर समाए हुए हैं; ये आपके अन्दर भी हैं, हमारे अन्दर भी हैं और सभी जीवों के अन्दर समाए हुए हैं । ऋषि, मुनि, योगी तथा दार्शनिक इनको नहीं जान सकते । इनका आध्यात्मिक स्वरुप व महिमा लोगों के समझ के बाहर है । ये सबके नियन्ता हैं । मोक्ष, सच्चाई, अनन्त जीवन और ज्ञान इन्हीं में है ।

जीवन तथा चेतना का प्राचीन राज्य इन्हीं में है। इनसे अलग रहकर आपका कोई अस्तित्व नहीं है । इनसे अलग जीवन नहीं है । यदि आप इनसे अलग हो जाएँगे तो पेड़ से अलग किए गए डाल की तरह सुख जाएँगे और लोग आपको आग में जला देंगे । इनके बिना आप कुछ भी नहीं कर सकते हैं । ये दाखलता हैं; आप और हम सब डाल हैं । जो इनमें बना रहेगा वह बहुत फल लाएगा । जो इनसे अलग हो जाएगा वह टूटे डाल की तरह सुख जाएगा और भीलनी उसे आग में जला देगी ।

21वीं सदी के आदिश्री अरुण (ईश्वर पुत्र अरुण) कौन हैं ?

सृष्टि के आदि में कुछ भी नहीं था – न पृथ्वी था, न स्वर्ग था और न अंतरिक्ष था । न दृश्य था न द्रष्टा था । केवल एक मात्र पूर्ण ब्रह्म ही पूर्णरूप से प्रकाशित हो रहे थे । सृष्टि रचना के उद्देश्य से पूर्ण ब्रह्म ने अपने आपको तीन विष्णु में विभाजित किया –

(1) महा विष्णु

(2) गर्वोदकासयी विष्णु

(3) क्षीरदकोसयी विष्णु

महा विष्णु से जड़ प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Lower Energy कहते हैं । इससे रचने का काम किया जाता है । गर्वोदकासयी विष्णु से चेतन प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Higher Energy कहते हैं। इससे रचना फंक्शन करती है ।
क्षीरदकोसयी विष्णु को ही Super Soul परमात्मा/पहिलौठा/ईश्वर पुत्र/ईश्वर के सदृश कहते हैं और यही जर्रे – जर्रे में समाया । इसी क्षीरदकोसयी विष्णु / परमात्मा/पहिलौठा/ईश्वर पुत्र/ ने जड़ प्रकृति और चेतन प्रकृति को इस्तमाल करके (Use / यूज करके ) पूरी सृष्टि रचा । यही क्षीरदकोसयी विष्णु ही सम्पूर्ण जगत का मूल करण हैं । (गीता 7 :4-6) श्रीमद्देवी भागवत में इसी क्षीरदकोसयी विष्णु को ही ईश्वर कहते हैं तथा धर्मशास्त्र इन्हें ईश्वर पुत्र कहते हैं। धर्मशास्त्र के अनुसार पूर्ण ब्रह्म ने अपने पुत्र (ईश्वर पुत्र) के द्वारा ही सारी सृष्टि रचवाया और ईश्वर पुत्र को ही सृष्टि के सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया । (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 1 : 2) धर्मशास्त्र ने ईश्वर पुत्र के विषय में कहा कि – वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। (धर्मशास्त्र, कुलुस्सियों 1 : 15)

“आदिश्री अरुण ” शब्द वास्तव में दो शब्दों का COMBINATION है अर्थात दो शब्दों का योग है – “आदिश्री” और “अरुण “। “आदिश्री” शब्द का अर्थ है – ऊँचा गरिमा, या कोई विशिष्ट और प्रसिद्ध । “आदिश्री” शब्द का एक अर्थ पहिलौठा, आदि पुरुष (FIRST BORN) भी है जो ईश्वर पुत्र या ईश्वर को सूचित करता है । दूसरी ओर “अरुण” शब्द का अर्थ होता है – प्रकाश, सूर्य ।
इसलिए “आदिश्री ” + “अरुण” (COMBINATION OF AADISHRI ARUN) का अर्थ होता है प्रकाश से भरा ऊँचा गणमान्य या विशिष्ट व्यक्ति ” ईश्वरपुत्र ” ।

Length of name (AADISHRI) – 8 letters ( 8 अक्षर )
Birth Star – Sun (सूर्य)
Rashi – Mesh (मेष)
Zodiac Sign – Aries (मेष)
Nakshtra – Krithika (कृतिका)

कौन हैं आदिश्री अरुण ?

“आदिश्री अरुण ” शब्द वास्तव में दो शब्दों का COMBINATION है अर्थात दो शब्दों का योग है – “आदिश्री” और “अरुण “। “आदिश्री” शब्द का अर्थ है – ऊँचा गरिमा, या कोई विशिष्ट और प्रसिद्ध । “आदिश्री”शब्द का एक अर्थ पहिलौठा, आदि पुरुष (FIRST BORN) भी है जो ईश्वर पुत्र या ईश्वर को सूचित करताहै । दूसरी ओर “अरुण” शब्द का अर्थ होता है – प्रकाश । इसलिए “आदिश्री ” + “अरुण” (COMBINATION OF AADISHRI ARUN) का अर्थ होता है प्रकाश सेभरा ऊँचा गणमान्य या विशिष्ट व्यक्ति ” ईश्वरपुत्र ” ।

अर्थात आदिश्री अरुण का अर्थ है – “प्रकाश सागर ”
Length of name (AADISHRI) – 8 letters ( 8 अक्षर )
Birth Star – Sun (सूर्य)
Rashi – Mesh (मेष)
Zodiac Sign – Aries (मेष)
Nakshtra – Krithika (कृतिका)

सृष्टि के आदि में कुछ भी नहीं था – न पृथ्वी था, न स्वर्ग था और न अंतरिक्ष था । न दृश्य था न द्रष्टा था ।केवल एक मात्र पूर्ण ब्रह्म ही पूर्णरूप से प्रकाशित हो रहे थे । सृष्टि रचना के उद्देश्य से पूर्ण ब्रह्म ने अपनेआपको तीन विष्णु में विभाजित किया –

(1) महा विष्णु (2) गर्वोदकासयी विष्णु (3) क्षीरदकोसयी विष्णु
महा विष्णु से जड़ प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Lower Energy कहते हैं । इससे रचने का काम कियाजाता है ।
गर्वोदकासयी विष्णु से चेतन प्रकृति उत्पन्न हुआ जिसको Higher Energy कहते हैं। इससे रचनाफंक्शन करती है ।

क्षीरदकोसयी विष्णु को ही Super Soul परमात्मा / पहिलौठा / ईश्वर पुत्र / ईश्वर के सदृश कहते हैंऔर यही जर्रे – जर्रे में समाया और यही पूरी सृष्टि रचना का मूल कारण हैं ।

इसी क्षीरदकोसयी विष्णु / परमात्मा / पहिलौठा / ईश्वर पुत्र / ने जड़ प्रकृति और चेतन प्रकृति को इस्तमालकरके ( यूज करके ) पूरी सृष्टि रचा । इसलिए इसी क्षीरदकोसयी विष्णु अर्थात ईश्वर पुत्र को ही सम्पूर्णजगत का मूल कारण कहा गया है । (गीता 7:6)
श्रीमद्देवी भागवत में इसी क्षीरदकोसयी विष्णु को ही ईश्वर कहते हैं तथा धर्मशास्त्र इन्हें ईश्वर पुत्र कहते हैं।

धर्मग्रन्थों ने ईश्वर पुत्र को पूर्ण ब्रह्म का प्रतिबिम्ब कहा है । जिस तरह मुख को दर्पण के सामने रखने से दर्पण में मुख का प्रतिबिम्ब बनता है ठीक उसी तरह ईश्वर पुत्र पूर्ण ब्रह्म के स्वयं का वास्तविक प्रतिबिम्ब है (Own Image Of Purn Brahm) । इसलिए धर्मशास्त्र, यूहन्ना 10:30 में साफ – साफशब्दों में कहा गया है कि “मैं और पिता एक हैं ” “अर्थात ईश्वर पुत्र और पुर ब्रह्म एक हैं ।”

धर्मशास्त्र के अनुसार पूर्ण ब्रह्म ने अपने पुत्र (ईश्वर पुत्र) के द्वारा ही सारी सृष्टि रचवाया और ईश्वर पुत्र कोही सृष्टि के सारी वस्तुओं का वारिस ठहराया । (धर्मशास्त्र, इब्रानियों 1 : 2) धर्मशास्त्र ने ईश्वर पुत्र के विषयमें कहा कि – वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्टि में पहिलौठा है। (धर्मशास्त्र, कुलुस्सियों 1 : 15)

वास्तव में आदिश्री अरुण ही वह पहिलौठा (FIRST BORN) अथवा आदि पुरुष है जिसने प्रकाश रूप मेंआकार (shape in Light Form)
धारण किया और फिर बाद में अरुण नाम से शारीर धारण किया ।आदिश्री अरुण जी का विचारधारा (दर्शन) और उनकी शिक्षाएँ निराकार ईश्वर – अनामी की प्रवृति (Based on the Anaami-the formless nature of God) पर आधारित है जिसने अपने पहिलौठा (FIRST BORN) होने के अस्तित्व से संपूर्ण ब्रह्मांड को रचा । ” आदिश्री अरुण ” शब्द यह व्याख्या करता है कि आदिश्री अरुण “आत्मा का स्वामी ” (MASTER SOUL)
है जो शिष्यों को चेतना के उच्च राज्यों का(Higher States of Consciousness) मार्ग दर्शन करता है । आदिश्री अरुण भक्तों को सुमिरन के द्वाराभीतरी ध्वनि को सुनने पर अत्यधिक बल दिया ताकि अध्यात्मिक उन्नति के वांछित राज्य को प्राप्त करसके।

अब प्रश्न यह उठता है कि आदिश्री फेथ के अंतर्गत कौन हैं ? जो आदिश्री अरुण के उपदेश में विश्वासरखता है और यह स्वीकार करता है कि (1) पूर्ण ब्रह्म का केवल एक ही पुत्र है जो पूर्ण ब्रह्म का प्रतिबिम्ब है जिनको परमात्मा कहते हैं, जो सम्पूर्ण सृष्टि के रचयिता हैं, जो सभी मनुष्य की आत्मा हैं और जो सभीआध्यात्मिकता एवं धर्मों के निकलने वाले झरना स्रोत के मुख हैं (उद्गम के स्रोत हैं) (2) केवल उन्हींपरमात्मा के पास जीवन देने और जीवन को वापस लेने की शक्ति मौजूद है (3) केवल उन्हीं परमात्मा सेनिकल कर मनुष्य जन्मने और मरने वाले शरीर में आया (4) केवल उन्हीं परमात्मा को प्राप्त कर जन्म -मृत्यु के चक्र से छुटकारा पा सकता है (5) केवल उन्हीं परमात्मा के आश्रय में रहकर सम्पूर्ण कर्म करने केबाबजूद भी मनुष्य उद्धार पासकता है और (6) केवल परमात्मा उन्हीं के मार्ग पर चल कर मनुष्य निज धामवापस लौट सकता है, केवल ऐसा विश्वास करने वाला व्यक्ति ही आदिश्री फेथ के अंतर्गत हैं।

कौन और क्या है आदिश्री अरुण की 11 शिक्षाएँ ?
(AADISHRI ARUN AND HIS 11 TEACHING)

आदिश्री अरुण दो शब्दों से मिलकर बना है – “आदिश्री ” + “अरुण” (COMBINATION OF AADISHRI ARUN) “आदिश्री” शब्द का अर्थ यह भी होता है – जो सबसे पहले जन्म लिया हो या जो सबसे पहले प्रकट हुआ हो या आदि पुरुष और “आदिश्री” शब्द ईश्वरपुत्र को भी संबोधित करता है।

दूसरी ओर “अरुण” शब्द का अर्थ होता है – प्रकाश ।
आदिश्री अरुण का अर्थ है – “प्रकाश सागर ”
Length of name (AADISHRI) – 8 letters ( 8 अक्षर )
Birth Star – Sun (सूर्य )
Rashi – Mesh (मेष)
Zodiac Sign – Aries (मेष)
Nakshtra – Krithika (कृतिका)

(1) ईश्वर केवल एक हैं । इनके केवल एक ही पुत्र और केवल एक ही संदेशवाहक (Messenger) हैं ।

(2) सभी धर्मशात्र केवल एक इसी ईश्वर की प्रेरणा से लिखी गई है । इसलिए सभी धर्मग्रन्थों को श्रद्धा, प्रेम एवं निष्ठा से पढ़ो ।

(3) ईश्वर के लिए प्रेम बिना शर्त के हों (Unconditional love), कामना रहित हों (Desire-free love) और हमेशा एक ही ईश्वर की अनन्य प्रेम से उपासना करो ।

(4) जो तुम कर्म करते हो, जो खाते हो, जो हवन करते हो, जो दान देते हो और जो तप करते हो केवल एक मात्र इसी ईश्वर में अर्पण करो ।

(5) अपने कमाई का दशमांश भाग ईश्वर के भवन में दो, अपने समय का दशमांश समय परोपकार में लगाओ, अपने समय का दशमांश समय ईश्वर के सुमिरन में लगाओ तथा अपने समय का दशमांश समय ईश्वर के कार्य में लगाओ।

(6) हमेशा प्रसन्न रहो तथा ईश्वर से अपने लिए क्षमा माँगो । सभी गलत कार्य मन से ही उपजते हैं। अगर मन परिवर्तित हो जाय तो गलत कार्य स्वतः रुक जाएगा ।

(7) उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता है ।

(8) जो मनुष्य इसी जीवन में मुक्ति प्राप्त करना चाहता है उसको एक ही जन्म में हजारों काम करना पड़ेगा। जैसे – इसी जन्म में गुरु घर जाओ (महीने में कम से कम एक दिन गुरु के घर जाओ), इसी जन्म में गुरु की सेवा करो (महीने में कम से कम एक दिन गुरु के घर जा कर गुरु की सेवा करो), इसी जन्म में गुरु की भक्ति करो (सप्ताह में कम से कम एक दिन गुरु के घर जा कर गुरु की भक्ति करो) और इसी जन्म में नाम दान पालो । अर्थात इसी जन्म में चार जन्म का काम करना है ।

(9) ईश्वर का विश्वास योग्य बनो, ईश्वर के सभी नियमों का पालन करो। आध्यात्मिक दृष्टि से पूर्णरूपेण विकसित हो चुकने पर ही तुम बहार निकल कर संसार में जीवन व्यतीत करो ।

(10) सभी मरेंगे – साधु या असाधु, धनि या दरिद्र । इसलिए पहले स्वयं सम्पूर्ण मुक्तावस्था को प्राप्त कर लो उसके बाद प्रत्येक कार्य में अपनी शक्ति का प्रयोग करो।

(11) उठो, जागो, मूर्ति पूजा मत करो और सम्पूर्ण रूप से सूरत – शब्द योग के द्वारा अपने स्वरुप को विकसित करो । जड़ की कोई शक्ति नहीं। प्रबल शक्ति आत्मा की ही है । डरो मत ! क्योंकि तुम्हारा नाश नहीं है बल्कि यह संसार सागर से पार उतरने का उपाय है । तुम बहादुर हो । हिचकने वाले पीछे रह जाएँगे और तुम कूद कर सबसे आगे पहुँच जाओगे । इससे अलग हट कर जो अपना उद्धार पाने में लगे हुए हैं, वे कभी भी अपना उद्धार नहीं कर सकेंगे।

आदिश्री अरुण के क्या हैं 7 विचारधारा ?

आदिश्री अरुण दो शब्दों से मिलकर बना है  – “आदिश्री ” + “अरुण” (COMBINATION OF AADISHRI ARUN)  “आदिश्री” शब्द का अर्थ यह भी होता है – जो सबसे पहले जन्म लिया हो या जो सबसे पहले प्रकट हुआ हो या आदि पुरुष और “आदिश्री” शब्द ईश्वरपुत्र को भी संबोधित करता है।

दूसरी ओर “अरुण” शब्द का अर्थ होता है – प्रकाश ।

आदिश्री अरुण का अर्थ है – “प्रकाश सागर ”

Length of name (AADISHRI) – 8 letters ( 8 अक्षर )

Birth Star – Sun (सूर्य )

Rashi – Mesh (मेष)

Zodiac Sign – Aries (मेष)

Nakshtra – Krithika (कृतिका)

आदिश्री ही वह पहिलौठा (FIRST BORN) अथवा आदि पुरुष है जिसने प्रकाश रूप में आकार धारण किया और फिर बाद में अरुण नाम से शारीर धारण किया। आदिश्री अरुण जी का विचारधारा (दर्शन) और उनकी शिक्षाएँ निराकार ईश्वर – अनामी की प्रवृति (based on the Anaami – the formless nature of God) पर आधारित है जिसने अपने पहिलौठा (FIRST BORN) होने के स्तित्व से संपूर्ण ब्रह्मांड को रचा । इनकी विचारधारा किसी व्यक्ति विशेष में भेद – भाव उत्पन्न नहीं करता है और न एक आत्मा होने के कारण मानव के एक जाति, एक पंथ, एक धर्म के होने में अर्चन पैदा करता है और न लिंग और लुप्तप्राय जातियों में भेद – भाव उतपन्न करने वाली भावनाओं का समर्थन करता है।

आदिश्री अरुण के विचार धारा का 7 स्तम्भ (Seven Pillars of AADISHRI Philosophy) हैं :

7 स्तम्भ ही आदिश्री अरुण की शिक्षाओं का मुख्य केन्द्र है। इन 7 सत्यों को समझ पाना बेहद आसान है। यह मानव जीवन से जुड़े बेहद आम बातें हैं जिनके पीछे छुपे गूढ़ रहस्यों को आप कभी समझ नहीं पाते। यह 7 सत्य निम्नलिखित हैं:

(1) दुख :- जीवन का अर्थ ही दुख है। जन्म लेने से लेकर मृत्यु तक मनुष्य को कई चरणों में दुख भोगना पड़ता है।
(2) चाहत :- दुख का कारण चाहत है। मनुष्य के सभी दुखों का कारण उसका कार्य, मोह या व्यक्ति के प्रति लगाव ही है।
(3) दुखों का अंत संभव है :- कई बार मनुष्य अपने दुखों से काफी परेशान हो जाता है । मनुष्य को यह समझना चाहिए कि उसके दुखों का अंत संभव है।
(4)
दुखों के निवारण का मार्ग :- सूरत शब्द योग ही मनुष्य के समस्त दुखों के निवारण का मार्ग है।
(5) जीते – जीते, इसी शरीर में, बिना मरे, Without Death मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है ।
(6) ईश्वर का आशीष प्राप्त कर आनंदमय जीवन प्राप्त करना संभव है ।
(7) आप तो नहीं मरेंगे पर हवा में बदल जायेंगे ताकि आप ईश्वर से मिल सकें और मुक्ति को प्राप्त करें ।

आदिश्री के क्या हैं 5 अनमोल वचन ?
(5 Precious thought of Aadishri)

(1) ईश्वर को अपने सुख का मूल जानो ।
(2) यदि सचमुच आपको ईश्वर में विश्वास है और आप ईश्वर का मूल्य समझते हैं तो आपके दिल में निश्चित ही ईश्वर पाने की लालसा बढ़ जाएगी ।
(3) यदि सचमुच आप ईश्वर में खुशियाँ ढूँढना चाहते हैं तो आपकी कोई भी इच्छा अधूरी नहीं रहेगी ।
(4) ईश्वर में खुशी का अर्थ होता है आपके ह्रदय को सचमुच शांति मिलेगा।
(5) यदि ईश्वर पाने की लालसा है तो आपका ह्रदय सचमुच खुशियों से भर जाएगा।

आदिश्री अरुण का प्रथम सन्देश
(MESSAGE OF AADISHRI)

जितेन्द्रिय (इन्द्रियों को जितने वाला), साधन परायण और श्रद्धावान मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है।

ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के,तत्काल ही भगवत्प्राप्तिरूप परम शांति को प्राप्त हो जाता है।

लेकिन जो व्यक्ति विवेकहीन, श्रद्धारहित और संशययुक्त है वह परमार्थ से अवश्य ही भ्रष्ट हो जाता है।

ऐसे संशययुक्त मनुष्य के लिए न यह लोक है, न परलोक है और न सुख ही है।

आदिश्री अरुण का दूसरा सन्देश

आदिश्री अरुण ने लोगों को सन्देश देते हुए कहा कि – प्रथम मनुष्य अर्थात प्रथम आदम जीवित प्राणी बना और अन्तिम आदम जीवनदायक आत्मा बना। परन्तु आदम पहले आत्मिक न था, पर स्वाभाविक था, इसके बाद वह आत्मिक हुआ । अर्थात आदम पहले आत्मिक देह (शरीर) में नहीं था बल्कि वह स्वाभाविक देह (शरीर) में था। ईश्वर का कहना नहीं मान कर उसने पाप किया और उस पाप के कारण वह स्वाभाविक देह (शरीर) से आत्मिक देह (शरीर) में आगया । स्वाभाविक देह (शरीर) में लोग नहीं मरते हैं और आत्मिक देह (शरीर) में लोगों को मरना पड़ता है । मनुष्य को आत्मिक देह (शरीर) से स्वाभाविक देह (शरीर) में ले जाने के लिए मैं पिता की गोद से उतर कर धरती पर आया हूँ ।

परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए आदिश्री ने कौन सा 7 तरीका बताया ?

परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए 7 तरीका निम्न लिखित है :

(1)  तत्व ज्ञानी बनो : परमेश्वर का प्रिय बनने के लिए जरुरी है कि आप तत्व ज्ञानी बनिए क्योंकि परमेश्वर ने कहा कि – उत्तम कर्म करने वाले चार प्रकार के भक्त मुझको भजते हैं –
अथार्थी (सांसारिक पदार्थों के लिए भजने वाला)
आर्त (संकट निवारण के लिए भजने वाला)
जिज्ञासु (मुझको जानने की इच्छा से भजने वाला)
ज्ञानी (मुझको तत्व से जानने वाला )
उनमें नित्य मुझमें एकीभाव से स्थित अनन्य प्रेम भक्ति वाला ज्ञानी भक्त अति उत्तम हैं, क्योंकि मुझको तत्व से जानने वाले ज्ञानी को मैं अत्यन्त प्रिय हूँ और वह ज्ञानी मुझे अत्यंत प्रिय है। (गीता 7 : 16 -17)

(2) परमेश्वर से निःस्वार्थ प्रेम करो और कामना छोड़कर उनकी पूजा करो : परमेश्वर ने कहा कि जो कोई भक्त मेरे लिए पत्र, पुष्प, फल, आदि अर्पण करता है, उस शुद्ध बुद्धि निष्काम प्रेमी भक्त का प्रेम पूर्वक अर्पण किया हुआ वह पत्र-पुष्पादि मैं सगुन रूप से प्रकट होकर प्रीति सहित खाता हूँ। (गीता 9 :26 )

(3) आसक्ति को त्याग कर कर्तव्य कर्म करो : परमेश्वर ने कहा कि जो निरन्तर आसक्ति से रहित होकर सदा कर्तव्य कर्म करता है वह भक्त मुझको मुझको प्रिय है।

(4) परमेश्वर ने कहा कि जो पुरुष सब भूतों में द्वेष भाव से रहित, स्वार्थ रहित, सबका प्रेमी और हेतु रहित दयालू है तथा ममता से रहित, अहंकार से रहित, सुख-दुखों की प्राप्ति में सम और क्षमावान है अर्थात अपराध करने वाले को भी अभय देने वाला है; तथा जो योगी निरंतर संतुष्ट है, मन-इन्द्रियों सहित शरीर को वश में किए हुए है और मुझमें दृढ़ निश्चय वाला है – वह मुझमें अर्पण किए हुए मन-बुद्धि वाला मेरा भक्त मुझको प्रिय है। (गीता 12 : 13 -14 )

(5) परमेश्वर ने कहा किमुझमें मन को एकाग्र करके निरन्तर मेरे भजन-ध्यान में लगे हुए हैं, जो भक्तजन अति श्रेष्ट श्रद्धा से युक्त होकर अनन्य प्रेम से मुझ परमेश्वर को भजते हैं वह भक्त मुझको मुझको प्रिय है।

(6) परमेश्वर ने कहा कि जो पुरुष अनन्य प्रेम और भक्ति से युक्त होकर निरन्तर मुझको स्मरण करता है वह भक्त मुझको मुझको प्रिय है।

(7) परमेश्वर ने कहा कि जो पुरुष परम प्रेम करके इस परम रहस्ययुक्त गीता शास्त्र को मेरे भक्तों में कहेगा वह मुझको ही प्राप्त होगा – इसमें कोई संदेह नहीं। जो पुरुष ऐसा करेगा उससे बढ़कर मेरा प्रिय कार्य करने वाला मनुष्यों में कोई भी नहीं है; तथा पृथ्वी भर में उससे बढ़कर मेरा प्रिय दूसरा कोई भविष्य में होगा भी नहीं। (गीता 18 : 68 – 69)

संसार के अंत समय के लिए क्या है आदिश्री का 14 सन्देश ?

संसार के अंत समय के लोगों के लिए का 14 सन्देश निम्नलिखित है :

(1) ईश्वर के आगमन के उस दिन और उस घड़ी के विषय में कोई नहीं जानता – न स्वर्ग के दूत,और न पुत्र, परंतु केवल पिता। (धर्मशास्त्र, मत्ती 24:36) धर्मशास्त्र यह भविष्यवाणी करता है कि ईश्वर के आने का वह समय आश्चर्य चकित कर देने वाला है। चोर की तरह छिप कर ईश्वर का आना होगा ।(धर्मशास्त्र, 2 पतरस 3:10)

वास्तव में उस दिन के बारे में यह भविष्यवाणी किया गया है कि “जैसे रात में चोर आता है, उसी तरह प्रभु का भी आगमन होगा ” (धर्मशास्त्र, 1 थिस्सलुनीकियों 5:2)
उस समय लोग कहते होंगे कुशल है और कुछ भय नहीं तो उन पर एकाएक विनाश आ पड़ेगा । (धर्मशास्त्र, 1 थिस्सलुनीकियों 5:3), ईश्वर हम लोगों को कष्ट पाने के लिए उस दिन को नियुक्त नहीं किया है बल्कि उद्धार पाने के लिए उस दिन को नियुक्त किया है। (धर्मशास्त्र, 1 थिस्सलुनीकियों 5:9)

(2) उस दिन विनाश के तुरत बाद सूर्य अँधेरा हो जाएगा, चाँद अपना रोशनी नहीं देगा और तारे आकाश से गिर पड़ेंगे । (धर्मशास्त्र, मत्ती 24:29)

(3) धर्मशास्त्र, प्रेरितों के काम 2:20 तथा योएल 2:31 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि – ईश्वर के उस महान दिन आने के पहले सूर्य अँधेरा और चाँद लहू के जैसा लाल हो जाएगा ।

प्रकाशित वाक्य 6 :12 -14 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि – जब उसने 6ठी मुहर खोली तो मैंने देखा कि एक बड़ा भूकंप हुआ, सूर्य कम्बल की तरह कला और चाँद लहू के जैसा लाल हो गया । आकाश के तारे पृथ्वी पर ऐसे गिर पड़े जैसे बड़ी आंधी से हिल कर अंजीर के पेड़ में से कच्चे फल झड़ते हैं । आकाश ऐसे सरक गया जैसे पत्र लपेटने से सरक जाता है और हरएक पहाड़, और टापू अपने स्थान से खिसक गया ।

(4) धर्मशास्त्र, प्रकाशित वाक्य 13:17 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि “कोई आदमी लेन – देन न कर सके, इससे बचने के लिए (बुद्धिमानी इसी में है कि) इसको अपनाएँ या शैतान के नम्बर (अंक) को अपना लें ।

अब बुद्धिमानी से इस बारे में सोचिए – जो शैतान के नम्बर (अंक) को अपने माथे पर न ले वह लेन – देन या खरीद – बिक्री न कर सकेगा । इसलिए इस भविष्यवाणी को पूरा होने के लिए क्या होगा कि लोगों को लेन – देन या खरीद – बिक्री रोक दे ? क्या लोगों को रुपये रखने के अधिकार से बंचित होना पड़े ? लोगों को इसके स्थान पर लेन – देन या खरीद – बिक्री के लिए एलेक्ट्रिक मशीन का प्रयोग करना होगा । जो शैतान के बातों को न माने तो उसके एकाउण्ट को इस प्रक्रिया से बटन दबा कर सील करना बहुत आसान होगा । क्या पहले कभी ऐसा हुआ था ? नहीं, क्योंकि ऐसा करने के लिए हम लोगों के पास साधन नहीं था। लेकिन आज ऐसा करने के लिए साधन है और आज इस साधन को अपनाने के लिए लोगों के ऊपर दबाब बनाया जा सकता है ।

ऐसा परिस्थिति क्यों आया इस बात को लोग भूल चुके हैं । क्या आपने इस बात के बारे में सोचा है ? शैतान के इस साधन को अपनाने से क्या होगा ? यदि लोग शैतान के इस साधन को अपनाने से इनकार करेगा तो वह लेन – देन या खरीद – बिक्री नहीं कर सकेगा । ऐसा विश्वस्तर पर साधन बन जाएगा कि खरीद – बिक्री के लिए लोग रूपये की जगह एलेक्ट्रोनिक मशीन का उपयोग करेगा । स्वीडेन, नाइजीरिया, इजराइल इत्यादि देशों में यह साधन प्रचलित हो चुके हैं । ऐसा करने के लिए कौन बाध्य करेगा ? धर्मशास्त्र यह कहता है कि वह शैतान का बेटा होगा या पाप का पुत्र होगा ।

ऊपर वर्णित कुछ देशों के अलावा भारत में भी यह प्रक्रिया (टेक्नोलॉजी ) लागू करने के लिए जबरदस्ती किया गया है । अगर गौर से देखेंगे तो पता चलेगा कि आज वर्तमान में सारे देश में चारों ओर कैशलेस सोसाइटी बनाने के लिए वित्तीय उथल-पुथल मचा है । ऐसा करके लोगों को शैतान के चिन्ह को लेने के लिए अर्थात कैशलेस सिस्टम को अपनाने के लिए जबरदस्ती किया जा रहा है । ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि आप अन्त के दिनों में प्रवेश कर चुके हैं । आपके नहीं चाहने से कुछ भी फर्क नहीं पड़ेगा ।

(5) धर्मशास्त्र, 2 तीमुथियुस 3:1-5 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि अंतिम दिनों में कठिन समय आएँगे क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता – पिता कि आज्ञा को टालने वाला, कृतघ्न, अपवित्र, मायारहित, क्षमारहित, दोष लगाने वाला, असंयमी, कठोर, भले का बैरी, विश्वासघाती, ढीठ, घमंडी और परमेश्वर के नहीं वरन सुखविलास के ही चाहने वाले होंगे । वे भक्ति का भेष तो धरेंगे पर उसकी शक्ति को न मानेंगे ; ऐसे से परे रहना। अभी वर्तमान समय में ऐसा ही खतरनाक समय आचुका है और अत्यधिक ख़राब स्थिति होने के लिए ऐसा ही खतरनाक समय बरकरार रहेगा । आज चारों ओर सारे संसार में
विरोध प्रदर्शन, दंगों और बगावत हो रहे हैं । आज विश्वस्तर पर आर्थिक संकट मंडरा रहे हैं और सब कुछ नष्ट हो जाने के लिए तैयार है । ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि सत्ता और शक्ति शैतान के हाथ में आचुका है । तो अब यह प्रश्न उठता है कि इस संकट से कौन उबार सकता है ? इसका कोई हल नहीं है। इसका निराकरण सोचना अपने आप को धोखा देना होगा ।

(6) धर्मशास्त्र, मत्ती 24:6 -7 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि तुम लड़ाइयों और लड़ाइयों की चर्चा सुनोगे । देखो घबरा न जाना क्योंकि इनका होना आवश्यक है, परंतु उस समय अन्त न होगा । क्योंकि जाति पर जाति और राज्य पर राज्य चढ़ाई करेगा; जगह – जगह अकाल पड़ेंगे और भूकंप होगा । आज वर्तमान समय में ऐसी स्थिति सब जगह बरकार है । सब जगह भुखमरी, भूकंप, लड़ाइयाँ की चर्चाएँ हो रही है । देश के अनेक स्थान में भूकंप आ रहे हैं । जुलाई 2016 से देखा जाय तो अभी तक एक महीने में लगभग 3,090 जगह भूकंप आ चुके हैं ।

(7) धर्मशास्त्र, दानिय्येल 12:4 में यह भविष्यवाणी की गई है कि तू इस पुस्तक पर मुहर लगा के इन वचनों को अन्त समय के लिए बन्द रख । बहुत लोग पूछ – पाछ और ढूंढ़-ढांढ करेंगे , और इससे ज्ञान भी बढ़ जाएगा ।

यह भविष्यवाणी संसार के अन्त के समय के लिए की गई है। इस भविष्यवाणी में दो बातें कही गई है –
(1) लोगों को धर्मशास्त्र का ज्ञान बढ़ जाएगा। आज आप देख रहे हैं कि धर्मशास्त्र का रहस्यमय ज्ञान खोला जा चुका है और
(2) लोगों को संसार का ज्ञान बढ़ जाएगा।
इस समय आप देख सकते हैं कि 50 वर्ष की तुलना में आज विज्ञान और प्रौद्योगिकी का ज्ञान कितना अधिक बढ़ चुका है।

(8) आज आप सावधानी पूर्वक विचार कीजिए कि धर्मशास्त्र अध्याय 13 की जो भविष्यवाणी थी “जो शैतान का छाप नहीं लेगा वह लेन – देन या खरीद – बिक्री नहीं कर सकेगा” वह पूरा हो चुका है । आप लोगों को कैश रखने का अधिकार आपसे छीन लिया गया है । इसके जगह पर एलेक्ट्रोनिक मशीन से पेमेंट करने के लिए कहा गया है। अब जो शैतान का बात मानने से इन्कार करेगा उसके एकाउण्ट को बटन दबा कर बड़ी आसानी से सील किया जा सकेगा । चुकि कैश के बिना लोग रह नहीं सकेंगे । इसलिए शैतान को लोगों से अपनी बातें मनवाना आसान हो जाएगा ।

(9) धर्मशास्त्र, मत्ती 24:21-22 में ईश्वर ने कहा कि उस समय ऐसा भारी क्लेश होगा, जैसा जगत के आरम्भ से अब तक न हुआ और न कभी होगा। यदि वे दिन घटाए न जाते , तो कोई प्राणी न बचता, परंतु चुने हुओं के कारण घटाए जाएँगे । बहुत सारे लोगों ने अपना दावा पेश किया है और बहुत सारे लोगों का मानना है कि ये घटना वर्तमान समय में घट रहा है और बहुत सारे लोगों का मानना है कि ये घटना आने वाले समय में घटेगा । बहुत सारे लोगों का मानना है कि ना इलाज वीमारी का फैलना, भुखमरी, आतंकवाद का फैलना और न्यूकिलीयर बम का धमकी दिया जाना यह सब इसी समय को दरसाता है । ईश्वर ऐसे खतरनाक समय से हमलोगों को बचाये हुए हैं क्योंकि धर्मशास्त्र में यह भविष्यवाणी किया गया है कि – चाहे जो कुछ भी हो, जो लोग ईश्वर में विश्वास करेगा उसको ईश्वर के द्वारा उद्धार एवं अनंत जीवन का उपहार दिया जाएगा । (धर्मशास्त्र, यूहन्ना 3:16)

(10) हम लोग यहाँ ईश्वर के आने के समय का अथवा कठिन समय उपस्थित होने के दिन का तिथि और समय निर्धारित करने के लिए नहीं बैठे हैं । यहाँ हम आपको केवल सावधान कर रहे हैं कि ” लोगों के सामने ईश्वर के आने का समय नजदीक है, बल्कि ऐसा समझो कि यह समय द्वार पर खड़ा है। (धर्मशास्त्र, मत्ती 24:33)

(11) यदि आप भविष्यवाणी के सभी पहलुओं पर गौर फरमाएँगे तो आपको पता चलेगा कि हमारे जेनरेशन के सभी लोग इस बात को जानते हैं कि हम लोग अन्त के दिनों में रह रहे हैं और ईश्वर लोगों के सम्मुख जल्द प्रकट होंगे । समस्या यह है कि शैतान कैसे देख पाएगा कि सभी लोग संसार के अन्त दिनों के समीप हैं । जो लोग संसार के पूर्णताया नष्ट हो जाने का समय, तिथि और दिन की भविष्यवाणी किया वह सब झूठा हो गया और बहुत सारे लोग इस सत्य पर यकीन नहीं करेंगे और बहुत सारे लोग ईश्वर को अपना कर छोड़ चुके हैं । इसका कारण यह है कि हम लोग अब संसार के अन्त के दिनों में पहुँच चुके हैं । धर्मशास्त्र में यह स्पष्ट कहा गया है कि जब इस घटनाओं के चिन्ह को देखो तो समझ जाओ कि संसार का अन्त नजदीक है ।

(12) आध्यात्मिकता को बढ़ते हुए देखना – धर्मशास्त्र, 1 तीमुथियुस 4:1 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि ” आनेवाले समयों में बहुत से लोग भरमाने वाली आत्माओं और दुष्टात्माओं की शिक्षाओं पर मन लगाने के कारण विश्वास से बहक जाएँगे । आज आप देखिए कि कितने अध्यात्म पर उपदेश देने वाले हो चुके हैं और संसार में कितने लोग संस्थाओं को स्थापित कर झूठे उपदेश देने के लिए विचरण कर रहे हैं ? ऐसा क्यों हो रहा है ? क्योंकि झूठे उपदेशक संसार में उठ कर खड़ा हो गए हैं और गलत तरह से अविनाशी आत्मा के बारे में उपदेश करते हैं ।

(13) प्राकृतिक प्रकोप के बारे में धर्मशास्त्र , लूका 21:25-26 में यह भविष्यवाणी किया है कि सूरज, चाँद और तारों में चिन्ह दिखाई देंगे । पृथ्वी पर और देश – देश के लोगों पर संकट होगा क्योंकि वे समुद्र के गरजने और लहरों के कोलाहल से लोग घबरा जाएँगे ।

भय के कारण और संसार पर आने वाली घटनाओं का इन्तजार करते – करते लोगों के जी में जी नहीं रहेगा क्योंकि आकाश कि शक्तियां हिलाई जाएगी । धर्मशास्त्र की सभी भविष्यवानियाँ आज के वर्तमान समय में घटते हुए हम सब देख रहे हैं । प्रत्येक वर्ष संसार में प्राकृतिक प्रकोप को उपस्थित होते सब लोग देख रहे हैं ।

(14) धर्मशास्त्र, प्रकाशित वाक्य 11:18 में यह भविष्यवाणी किया गया है कि अन्य जातियों ने क्रोध किया, और तेरा प्रकोप आ पड़ा और वह समय आ पहुँचा है कि मरे हुए का न्याय किया जाय, और तेरे दास भविष्यवक्ताओं और पवित्र लोगों को और उन छोटों – बड़ों को जो तेरे नाम से डरते हैं, बदला दिया जाए, और पृथ्वी को बिगाड़नेवाले नाश किये जाएँ । आज आप देख रहे हैं कि पृथ्वी को बिगाड़ने और पृथ्वी को नाश करने के लिए विभिन्न देशों के लोग अनेक तरह के परमाणु बम, रारायनिक हथियार इत्यादि लेकर बैठे हैं। ऐसे लोगों के साथ ईश्वर क्या करेंगे ? उनको नष्ट किया जायेगा – यह भविष्यवाणी आप जान चुके हैं।

आदिश्री अरुण ने भक्ति योग के बारे में क्या कहा ?

भक्ति, संस्कृत के मूल शब्द “भज” से निकला है – जिसका अर्थ है प्रेममयी सेवा और संस्कृत में योग का अर्थ है “जोड़ना”। भक्ति योग का अर्थ है परमेश्वर से प्रेममयी सेवा के द्वारा जुड़ना। प्रेम में स्वार्थ नहीं होता है । प्रेम में लोग बलिदान देते हैं । प्रेम में लोग त्याग करते हैं । प्रेम में उपहार उस वस्तु को देते हैं जो अनमोल हो । अर्थात वह प्रेम जो अनमोल हो, जिसमें स्वार्थ नहीं हो उस निःस्वार्थ सेवा द्वारा परमेश्वर से जुड़ने का नाम भक्ति योग है । पराभक्ति ही भक्तियोग के अन्तर्गत आती है जिसमें मुक्ति को छोड़कर अन्य कोई अभिलाषा नहीं होती। गीता के अनुसार पराभक्ति तत्व ज्ञान की वह पराकाष्ठा है जिसको प्राप्त होकर और कुछ भी जानना बांकी नहीं रह जाता ।

सामान्य जीवन में भी आप जो कुछ कार्य करते हैं वह अगर इस भावना से किए जाएँ कि वे सब परमेश्वर की प्रसन्नता के लिए हैं एवं उनके फलस्वरूप जो भी प्राप्त होगा वो उनको ही अर्पित करें तो यह भी भक्ति योग ही है ।

भक्ति का मतलब यह नहीं है कि आपको मंदिर जाना होगा, आपको पूजा करनी होगी, आपको घंटों भर बैयह कर भजन गाना होगा, आपको नारियल तोडऩा होगा। भक्ति बुद्धि का ही एक दूसरा आयाम है। बुद्धि सत्य पर जीत हासिल करना चाहती है। भक्ति बस सत्य को गले लगाना चाहती है। भक्ति समझ नहीं सकती मगर अनुभव कर सकती है। बुद्धि समझ सकती है मगर कभी अनुभव नहीं कर सकती। व्यक्ति के पास चुनाव का एक यही विकल्प है – पराभक्ति ।

जब आप किसी चीज या किसी व्यक्ति से अभिभूत होते हैं, तो आप स्वाभाविक रूप से भक्त हो जाते हैं। लेकिन यदि आप भक्ति करने की कोशिश करते हैं, तो इससे समस्याएं पैदा होती हैं क्योंकि भक्ति और छल के बीच बहुत बारीक रेखा है। भक्ति की कोशिश आपमें कई तरह के भ्रम पैदा कर सकती है। तो आप भक्ति का अभ्यास नहीं कर सकते, लेकिन आप कुछ ऐसी चीजें जरूर कर सकते हैं जो आपको भक्ति तक पहुंचा सके, भक्त बना सके वह चीज है निःस्वार्थ प्रेम ।

यह मार्ग सभी के लिए समान रूप से खुला है। भक्त होने के लिए किसी भी प्रकार की योग्यता, ज्ञान आदि की आवश्यकता नहीं। बस भक्त का सरल, सहज एवं निर्मल होना ही भक्ति के लिए जरूरी है।

आदिश्री अरुण ने क्या है कल्कि सूरत शब्द योग के बारे में ?

सूरत शब्द योग अंतर्मुखी स्थिति में जा कर प्रकाश और आकाशीय ध्वनि से अपने आप को जोड़ने की धारणा पर आधारित है। सूरत का अर्थ है “आत्मा” अर्थात वह ध्यान या वह चेहरा जो कि कैसे आत्मा खुद को बाहर व्यक्त व्यक्त किया है। (‘Surat’ means ‘attention’ which is how the soul outwardly expresses itself) शब्द का अर्थ है वह शब्द जो आत्मा की संगीत को व्यक्त करे। (‘Shabd’ literally means ‘word’. In Surat Shabd Yoga, the term ‘word’ signifies the music of the soul) योग का अर्थ होता है जोड़ना। (‘Yoga’ means ‘union’) और सूरत शब्द योग का मुख्य उद्देश्य है आत्मा को उस शब्द से जोड़ना जो आत्मा के संगीत का सार है। या फिर रचनात्मक ऊर्जा के गतिशील बल का प्रयोग कर उनसे जोड़ना जो सृष्टि में चारों तरफ कम्पन के रूप में मौजूद है।

आदिश्री अरुण ने अनामी लोक में जाने के लिए क्या रास्ता दिखाया ?

अनामी लोक में जाने के लिए 16 पौड़ी हैं जो निम्न लिखित हैं :
(1) अविनाशी लोक AVINASHI LOK:
अनामी ANAMI – AADI SAT – GODSELF
अगम AGAM – KARYA BRAHM
अलख ALAKH – VAIKUNTH
(2) सत-लोक SAT LOK (अविनाशी लोक AVINASHI LOK) ——- VEENA / BAG PIPE
Sitting Place of Son of Purn Brahm (Ishwar Putra or Guru)
(3) सोऽहं ब्रह्म SOHAM BRAHM (BHRAWAR GUPHA)————— FLUTE
(4) महा शून्य MAHA SUNN —————————————– SILENCE
(5) शून्य SUNN —————————————– SILENCE
(6) मानसरोवर झील MANSAROVAR LAKE —————————- SILENCE
(7) रा रम ब्रह्म RA RAM BRAHM (DASAM DWAR) —————— SARANGI / SITAR
(8) माया ब्रह्म / ॐ कार MAYA BRAHM / ONKAAR (TRIKUTI) ——-TAAL
(9) ॐब्रह्म OM BRAHM (JYOTI NIRANJAN)– SAHASRAAR—— BELL, CONCH
(10) THIRD TIL / THIRD EYE तीसरा आँख

 

 

 

 

 

 

 

 

(11) AGYA CHAKRA आज्ञा चक्र
(12) THROAT CHAKRA – (Ajna Chakra) अजना चक्र
(13) HEART CHAKRA – (VishuddhaChakra) विसुधा चक्र
(14) NAVEL CHAKRA – Manipura Chakra (Nabhi) मणिपुरा चक्र
(15) LING / GENITAL CHAKRA – Svadhishthana Chakra स्वाधीस्थना चक्र
(16) RECTUM – ROOT CHAKRA – MOOLADHAR Chakra (Guda) मूलाधार चक्र

सूरत शब्द  योग ध्यान मार्ग का एक ऐसा व्यावहारिक साधन है जो अन्दर के रहस्यमय प्रकाश और आत्मा का शब्द सुन कर अनुभव करने के लिए सक्षम है। यह  एक ऐसी  प्रक्रिया है जिसको “जीने और मरने की कला” कहते हैं जिसमें बहिर्मुखी ध्यान अंतर्मुखी हो जाता है और ध्यान  मूर्त रूप में प्रकट हो  कर दिव्य शक्ति के संपर्क में आ जाता  है।  दिव्य शक्ति के संपर्क में आ जाने से शांति, प्रेम, प्यार, आनंद, परम आनंद प्राप्त होता है तथा भय, चिंता और पड़ेशानी दूर होता है।

 

क्या है अनामी लोक में जाने का रास्ता ?

आदिश्री अरुण ने कहा कि अनामी लोक वह लोक है जहाँ से हम और आप चल कर धरती पर इस जन्मने – मरने वाले शरीर में  आए हैं। यह अथाह प्रकाश का सागर है जिसमें अनगिनत प्रकाश की बूंदें हैं। इस प्रकाश बून्द को आत्मा कहते हैं। यही वह जगह है जहाँ पहुँच कर मनुष्य जन्म मरण से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर लेता है।

अनामी लोक में जाने के लिए सही मार्ग एवं दूरी 

(191करोड़ 40 लाख योजन; 1 योजन = १२ किलो मीटर)

(191Crore  40 Lakh Yojan) 
[1 yojan = 12 kilo Meter]

1. (Anami / अनामी) – GOD SELF
100 Crore yojan
2. (Agam /अगम ) – From 2 to 4 Sach Khand ; Avinashi Lok
50 Crore yojan
3. (Alakh / अलख)
18 crore 25 Lakh yojan
4. (Sat Lok / सत लोक )
12 Crore yojan
5. (Tapo Lok / तपो लोक)
8 Crore yojan
6. (Jan Lok / जन लोक )
2 Crore yojan
7. ( Mahar Lok / महर्लोक )
1 Crore yojan
8.(Dhruv Lok / ध्रुव लोक ) – from 8 o 17 – 14 Lakh yojan Swarg Lok (स्वः)
1 Lakh yojan
9. (Sapt – rishi Mandal / सप्तऋषि मंडल)
1 Lakh yojan
10. (Shani/ Satern/शनि)
2 Lakh yojan
11. (Jupiter / बृहस्पति)
2 Lakh yojan
12. (Mars / Mangal / मंगल)
2 Lakh yojan
13. (Sukra /शुक्र)
2 Lakh yojan
14. (Budh / बुध)
2 Lakh yojan
15. (Whole Knashtra Mandal/सम्पूर्ण नक्षत्र मंडल)
1 Lakh yojan
16. (Moon / चन्द्र मंडल)
1 Lakh yojan
17. (Sun/सूर्य मंडल)
1 Lakh yojan – भुवर्लोक (भूवः अर्थात अंतरिक्ष )
18. (Earth / पृथ्वी) – भू:

आदिश्री अरुण ने कहा कहाँ से और कैसे आगए शरीर में ?

क्षीरदकोसयी विष्णु – पूर्ण ब्रह्म का एकलौता पुत्र (जिसे आदिश्री अरुण / ईश्वर पुत्र कहते हैं ) जिस स्थान में आकर प्रकाश के रूप में फैल गए उसी स्थान को अनामी लोक कहते हैं। अनामी लोक – अथाह प्रकाश का सागर है जिसमें अनगिनत प्रकाश की बूंदें हैं। इस प्रकाश बून्द को आत्मा कहते हैं। यहीं से प्रकाश की बून्द धरती पर जाने के लिए नीचे उतरी। अनामी से वह अगम लोक में आई। अगम लोक से अलख लोक में आई। अलख लोक से वह सत लोक में आई। सत लोक से वह सोऽहं ब्रह्म (भँवर गुफा) में आई। सोऽहं ब्रह्म (भंवर गुफा) से वह  महा शून्य में आई। महा शून्य से वह शून्य में आई। शून्य से वह मानसरोवर झील में आई। मानसरोवर झील से वह रा रम ब्रह्म  (दसम द्वार) में आई।  रा रम ब्रह्म  (दसम द्वार) से वह माया ब्रह्म (त्रिकुटी ) में आई। माया ब्रह्म (त्रिकुटी ) से वह ॐ ब्रह्म (ज्योति निरंजन) में आई।   ॐ ब्रह्म (ज्योति निरंजन) से वह  तीसरी आँख पर आई। तीसरी आँख से वह आज्ञा चक्र में आई और आज्ञा चक्र से दोनों आँखों में फैल गई।

इस प्रकार आप  अनामी लोक से  चल कर धरती पर इस जन्मने – मरने वाले शरीर में  आए हैं। अब आप जैसे – जैसे ऊपर से नीचे शरीर में आगए उसी प्रकार शरीर से बहार निकल कर आप ऊपर अनामी लोक में पहुँच जाइए । क्योंकि अनामी  ही  वह जगह है जहाँ पहुँच कर आप  जन्म-मरण से छूटकर मोक्ष को प्राप्त कर सकते हैं ।

अब प्रश्न यह उठता है कि 5 ब्रह्म कौन है जिससे होकर आप शरीर में आ गए ? वह 5 ब्रह्म निम्न लिखित है :-
(1) सत लोक
(2) सोऽहं ब्रह्म (भंवर गुफा)
(3) रा रम ब्रह्म (दसम द्वार)
(4) माया ब्रह्म (त्रिकुटी)
(5) ॐ ब्रह्म (ज्योति निरंजन)

उस  5 ब्रह्म पर 5 अलग – अलग जो शब्द सुनाई दिए थे वह निम्न लिखित है :-
(1) सत लोक   —————————    वीणा / बैग पाइप
(2) सोऽहं ब्रह्म (भंवर गुफा) ————–     वंशी
(3) रा रम ब्रह्म (दसम द्वार) ————–     सारंगी / Sitar
(4) माया ब्रह्म (त्रिकुटी) ——————     ताल
(5) ॐ ब्रह्म (ज्योति निरंजन) ————–    घंटा और शंख

FIVE SOUND AROSE IN FIVE BRAHM WHILE THE SUPER SOUL CAME DOWN INTO THE BODY

(1) AVINASHI LOK:

ANAMI                           – AADI SAT – GODSELF

AGAM                             – KARYA BRAHM

ALAKH                            – VAIKUNTH

(2)  SAT LOK ————————————————— VEENA / BAG PIPE

Sitting Place of Son of Purn Brahm (Ishwar Putra or Guru)

(3) SOHAM BRAHM (BHRAWAR GUPHA) ——— ——————  FLUTE

(4) MAHA SUNN                               —————————————–            SILENCE

(5) SUNN                                                —————————————–            SILENCE

(6) MANSAROVAR LAKE         ————————————–            SILENCE

(7) RA RAM BRAHM (DASAM DWAR) —————————      SARANGI / SITAR

(8) MAYA   BRAHM / ONKAAR (TRIKUTI) —————————      TAAL

(9) OM BRAHM (JYOTI NIRANJAN)– SAHASRAAR———–     BELL, CONCH

(10) THIRD TIL / THIRD EYE

 

 

 

 

 

 

 

 

(11) AGYA CHAKRA 

(12) THROAT CHAKRA(Ajna)

(13) HEART CHAKRA(Vishuddha)

(14) NAVEL CHAKRA – Manipura (Nabhi)

(15) LING / GENITAL CHAKRA Svadhishthana

(16) RECTUM – ROOT CHAKRAMOOLADHAR (Guda)

आदिश्री अरुण मोक्ष पाने का कौन सा 5 उपाय बताया  ?

गीता के अनुसार मोक्ष पाने के चार उपाय हैं –

(1) भक्ति योग Bhakti yoga is the path of devotion
(2) ज्ञान योग Gyan yoga is the path of knowledge
(3) राज योग Raja yoga is the path of discipline
(4) कर्म योग  Karma Yoga is the path of selfless action
संत मत के अनुसार :
(5) सूरत शब्द योग Surat Shabd  Yog

मोक्ष पाने के लिए योग ही उपाय है और इसके लिए  चार प्रकार के योग बताये गए हैं ।  उन योगों  में भक्ति योग सर्व श्रेष्ट योग है ।
भक्ति योग 5  प्रकार के हैं :-
(1) सत्संग भक्ति Satsang Bhakti:

(2) श्रवण भक्ति Shravana Bhakti:

(3) कीर्तन भक्ति  Kirtan Bhakti:

(4) सुमिरन भक्ति Smarana Bhakti:

(5) अर्चना भक्ति  Archana Bhakti: